Class 9 Hindi Kshitij Chapter 16 Summary
Yamraaj Ki Disha by Chanrkaant Dewtaale- यमराज की दिशा
चंद्रकांत देवताले (chandrakant devtale) का जीवन परिचय: चंद्रकांत देवताले का जन्म मध्यप्रदेश के जौलखेड़ा गाँव में सन 1936 में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक एवं उच्च शिक्षा इंदौर से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने मुक्तिबोध पर सागर विश्वविद्यालय, सागर से पी-एच. डी. की। उन्होंने अपनी कविताओं में मनुष्य के सुख-दुःख, विशेषकर औरतों और बच्चों को स्थान दिया था। देवताले की कविताओं में जूता पॉलिश करते हुए एक लड़के से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति तक शामिल होते हैं। वे ‘दुनिया के सबसे गरीब आदमी’ से लेकर ‘बुद्ध के देश में बुश’ तक पर कविताएं लिखते थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में दलितों, वंचितों, आदिवासियों, शोषितों आदि को जगह दी।
चंद्रकांत देवताले को ढेर सारे पुरस्कार मिले, जिसमें अंतिम महत्त्वपूर्ण पुरस्कार, सन 2012 का साहित्य अकादमी पुरस्कार था। यह उनके कविता संग्रह ‘पत्थर फेंक रहा हूं’ के लिए दिया गया था। देवताले की कविता की जड़ें गाँव-कस्बों और निम्न मध्यवर्ग के जीवन में हैं। उनमें मानव जीवन अपनी विविधता और विडंबनाओं के साथ उपस्थित हुआ है। कवि में जहाँ व्यवस्था की कुरूपता के खिलाफ गुस्सा है, वहीं मानवीय प्रेम-भाव भी है। वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहते हैं। कविता की भाषा में अत्यंत पारदर्शिता और एक विरल संगीतात्मकता दिखाई देती है।
यमराज की दिशा कविता का सार- Yamraj Ki Disha Poem Meaning : अपनी इस कविता में कवि सभ्यता के विकास की खतरनाक दिशा की ओर इशारा करते हुए कहना चाहता है कि आज के समाज में चारों तरफ भ्रष्टाचार फैला हुआ है। समाज में हर जगह बुराई फ़ैल चुकी है। कवि को लगता है कि अब चारों तरफ यमराज का ही वास है। शहरों में चारों ओर बनी ऊँची-ऊँची इमारतें उन्हें यमराज की याद दिलाती हैं। हर जगह लोगों में भ्रष्टाचार, हिंसा, लालच जैसी भावनाएं घुस चुकी हैं और इसी कारणवश वे सभी एक-दूसरे को मौत की नींद सुलाने वाले हैं। कवि अपनी माता को याद करता है, जिन्होंने उसे बताया था कि दक्षिण दिशा में यमराज का वास है। लेकिन अब कवि को लगता है कि यमराज सर्वयापी है और इसी वजह से वो चैन की नींद नहीं सो पा रहा है।
यमराज की दिशा- चंद्रकांत देवताले
माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बर्दाश्त करने
के रास्ते खोज लेती है
माँ ने एक बार मुझसे कहा था-
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था-
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में
माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फायदा जरूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता
पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
माँ अब नहीं हैं
और यमराज की दिशा भी अब वह नहीं रही
जो माँ जानती थी
यमराज की दिशा – Yamraj Ki Disha Poem Summary
माँ की ईश्वर से मुलाकात हुई या नहीं
कहना मुश्किल है
पर वह जताती थी जैसे
ईश्वर से उसकी बातचीत होती रहती है
और उससे प्राप्त सलाहों के अनुसार
जिंदगी जीने और दुख बर्दाश्त करने
के रास्ते खोज लेती है
यमराज की दिशा प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-16 कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता चंद्रकांत देवताले हैं। इस कविता में कवि की माँ का ईश्वर के प्रति विश्वास का अद्भुत वर्णन किया है।
यमराज की दिशा भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि ने अपनी माँ के ऊपर अपने विश्वास और उनकी माँ के ईश्वर पर विश्वास का वर्णन किया है। उनके अनुसार उन्हें यह नहीं पता कि उनकी माँ ने ईश्वर को देखा है या नहीं और यह अनुमान लगाना भी लेखक के लिए बहुत कठिन है। लेकिन उनकी माँ उन्हें यह विश्वास दिलाती थीं कि उनके और ईश्वर के बीच बातचीत होती रहती है और ईश्वर उन्हें जिंदगी जीने की ज़रूरी सलाह देते रहते हैं। ईश्वर से प्राप्त सलाह के अनुसार उनकी माँ जिंदगी जीने और दुःख बर्दाश्त करने के रास्ते खोज लेती है। माँ कवि को भी जिंदगी जीने के सही रास्ते बताती है और समस्याओं का सामना करने की प्रेरणा देती है।
यमराज की दिशा विशेष :-
1. जिंदगी जीने में अनुप्रास अलंकार है।
2. भाषा शैली सीधी और सरल हिंदी है।
माँ ने एक बार मुझसे कहा था-
दक्षिण की तरफ पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं
यमराज की दिशा प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-16 कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने बचपन से ही अपनी माँ से बहुत से शिक्षा ग्रहण की थी।
यमराज की दिशा भावार्थ :- जब कवि बच्चे थे, तब उनकी माँ ने उन्हें बहुत सारी शिक्षाएं दी थी। उन शिक्षाओं में से एक यह भी थी कि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके कभी नहीं सोना चाहिए। दक्षिण दिशा में यमराज (मृत्यु के देवता) का निवास होता है। अगर हम दक्षिण दिशा की ओर पैर करके सोएंगे, तो यमराज को गुस्सा आ जाएगा। इसलिए हमारा इस दिशा में पैर करके ना सोना ही चतुराई है, क्योंकि मृत्यु के देवता, यमराज को गुस्सा दिलाना कोई बुद्धिमानी की बात नहीं है।
यमराज की दिशा भावार्थ :-
1. क्रुद्ध करना में अनुप्रास अलंकार है।
2. भाषा शैली सीधी और सरल हिंदी है।
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
उसने बताया था-
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा दक्षिण में
यमराज की दिशा प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-16 कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता चंद्रकांत देवताले हैं। इन पंक्तियों में कवि ने बचपन में अपनी माँ से किए सवालों का वर्णन किया है।
यमराज की दिशा भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बच्चों के कोमल मन में उठने वाले सवालों का वर्णन किया है। किस प्रकार एक बच्चा अपनी माँ के समझाने के बाद उससे यमराज के घर का पता पूछने लगता है। माँ की कुशलता का तो कोई जवाब ही नहीं है। उसे पता है कि बच्चे को किस तरह समझाना है। वह अपने बच्चे को बोल देती है कि तुम जहाँ पर भी रहो, उस जगह से दक्षिण दिशा की तरफ हमेशा यमराज का वास होगा। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने दक्षिण दिशा के द्वारा दक्षिणपंथी विचारधारा को यमराज बताया है क्योंकि जो भी इसके चंगुल में आता है, वह अपनी सभ्यता-संस्कृति का नाश कर बैठता है, इस तरह उसका सर्वनाश हो जाता है।
यमराज की दिशा विशेष:-
1. पता पूछा में अनुप्रास अलंकार है।
2. भाषा शैली सीधी और सरल हिंदी है।
माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फायदा जरूर हुआ
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा
यमराज की दिशा प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-16 कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता चंद्रकांत देवताले हैं। लेखक को बचपन में अपनी माँ से मिली सीख बड़े होकर अच्छे से समझ में आई।
यमराज की दिशा भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि ने कहा है कि माँ के बार-बार समझाने से लेखक कभी भी दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोया और इस चीज का एक अच्छा प्रभाव यह पड़ा कि लेखक को दक्षिण दिशा पहचानने में कभी भी परेशानी नहीं हुई। इसका अर्थ यह है कि बड़े होने के बाद जब लेखक को अपनी माँ की दी हुई सीख समझ आयी, तो उन्हें दक्षिण दिशा का तात्पर्य समझ आया और अपनी माँ की दी हुई सीख पर अमल करते हुए, उन्होंने कभी भी दक्षिणपंथी विचारधारा को नहीं अपनाया। इससे उन्हें यह फायदा हुआ कि दूर रहकर उन्हें उनकी त्रुटियों का आभास हो गया।
यमराज की दिशा विशेष:-
1. दक्षिण दिशा में अनुप्रास अलंकार है।
2. भाषा शैली सीधी और सरल हिंदी है।
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था
होता छोर तक पहुँच पाना
तो यमराज का घर देख लेता
यमराज की दिशा प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-16 कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता चंद्रकांत देवताले हैं। कवि को बचपन में अपनी माँ के द्वारा दी हुई सीख हमेशा याद रही इसलिए वह किसी भी प्रकार के चुंगल में नहीं फँसा।
यमराज की दिशा भावार्थ :- यमराज का घर देखने के लिए कवि दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक गया और जब भी वह दक्षिण दिशा में यात्रा करता, हर समय उसे अपने माँ की दी हुई सीख याद आती। दक्षिण दिशा में यमराज का घर होता है। इसी कारणवश वह यमराज का घर खोजने में लग जाता है, लेकिन कवि को कभी यमराज का घर नहीं मिला। उनके अनुसार दक्षिण दिशा का छोर (क्षितिज) बहुत ही दूर था, जिस तक कवि कभी पहुँच नहीं पाया और इसी वजह से उसे यमराज का घर भी नहीं मिला।
इसका अर्थ यह है कि जब भी वह दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर बढ़ा हर बार उसे अपने माँ के द्वारा दी हुई सीख याद आई और इसी वजह से वह कभी भी उसके चंगुल में नहीं पड़ा। यही कारण है कि वह कभी भी दक्षिण विचारधारा को नहीं अपना पाया।
यमराज की दिशा विशेष:-
1.दूर-दूर में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. लाँघ लेना में अनुप्रास अलंकार है।
3. भाषा शैली सीधी और सरल हिंदी है।
पर आज जिधर भी पैर करके सोओ
वही दक्षिण दिशा हो जाती है
सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं
यमराज की दिशा प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-16 कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने यमराज की बारे में बताया है कि केवल दक्षिण दिशा में ही नहीं बल्कि हर दिशा में उसका वास है।
यमराज की दिशा भावार्थ :- कवि के अनुसार, उनकी माँ ने जब उन्हें यह सीख दी थी, तब यमराज का वास केवल दक्षिण दिशा में था। लेकिन अब ऐसा नहीं है, क्योंकि चारों दिशाओं में यमराज का वास हो गया है। इसीलिए सोते समय चाहे जिस भी दिशा की ओर पैर रखो, कवि को वही दक्षिण दिशा लगती है। इस तरह, पहले और आज की स्थिति में काफी अंतर आ चुका है। आज यमराज का विस्तार हर दिशा में फैल चुका है। कवि जिस दिशा में पैर करके सोता है, उस दिशा में उसे यमराज के बड़े-बड़े आलीशान महल नजर आते हैं। उन इमारतों में यमराज की दहकती हुई लाल आँखें कवि को सोने नहीं देती हैं।
इसका अर्थ यह है कि पहले दक्षिणपंथी विचारधारा का खतरा केवल कुछ गिने-चुने लोगों से ही था। लेकिन आज ऐसा नहीं है क्योंकि अधिकांश लोग इस विचारधारा से ग्रस्त हो चुके हैं। इसलिए अब हम किसी भी दिशा में सुरक्षित नहीं। इस विचारधारा के लोग एक-दूसरे का शोषण करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं।
यमराज की दिशा विशेष:-
1. दक्षिण दिशा में अनुप्रास अलंकार है।
2. भाषा शैली सीधी और सरल हिंदी है।
माँ अब नहीं हैं
और यमराज की दिशा भी अब वह नहीं रही
जो माँ जानती थी
यमराज की दिशा प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-16 कविता ‘यमराज की दिशा’ से ली गई हैं। इस कविता के रचियता चंद्रकांत देवताले हैं। कवि ने पूंजीपतियों द्वारा गरीब जनता का शोषण करने का वर्णन किया है।
यमराज की दिशा भावार्थ :- लेखक के अनुसार माँ के चले जाने के उपरांत अब यमराज की दिशा भी बदल चुकी है। उसका विस्तार हर दिशा में हो चुका है। इसलिए माँ के द्वारा बताया गया नुस्खा अब किसी काम का नहीं रहा। लेखक जिस दिशा में भी पैर करके सोने की कोशिश करता है। हर तरफ लम्बी-लम्बी इमारतों में उसे यमराज की दहकती हुई आँखें नजर आती हैं। इसका अर्थ यह है कि अब चारों ओर पूँजीपतियों का वास है, जो साधारण जनता का शोषण करने में लगे हुए हैं।
यमराज की दिशा विशेष:-
1. भाषा शैली सीधी और सरल हिंदी है।
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In 7.number there is kawi not lekhak