Class 9 Hindi Kshitij Chapter 17 Summary
Bachhe Kaam Par Ja Rahe Hai by Rajesh Joshi – बच्चे काम पर जा रहे हैं
राजेश जोशी का जीवन परिचय- Rajesh Joshi Ka Jeevan Parichay: राजेश जोशी का जन्म मध्य प्रदेश के नरसिंह ज़िले में सन् 1946 में हुआ था। राजेश जोशी ने एम.एस.सी और एम. ए. की डिग्रियाँ हासिल कीं और फिर एक बैंक में नौकरी करने लगे। पढ़ाई ख़त्म होने के तुरंत बाद ही उन्होंने पत्रकारिता आरम्भ कर दी। राजेश जोशी जी ने कविताओं के अलावा कहानियाँ, नाटक, लेख और टिप्पणियाँ भी लिखीं। साथ ही उन्होंने कुछ नाट्य रूपांतर तथा कुछ लघु फ़िल्मों के लिए पटकथा लेखन का कार्य भी किया। कई भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अँग्रेजी, रूसी और जर्मन में भी उनकी कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। उनकी कविताएं जीवन के संकट में भी आस्था को उभारती हैं।
उन्हें शमशेर सम्मान, पहल सम्मान, मध्य प्रदेश सरकार का शिखर सम्मान और माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार के साथ, केन्द्र साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित किया गया। उनकी कविताएं स्थानीय भाषा, बोली से युक्त हैं। उनकी काव्य रचनाओं में आत्मीयता, लयात्मकता के साथ मनुष्यता को बचाए रखने का निरंतर संघर्ष भी विद्यमान है। राजेश जोशी में जितना दुनिया के नष्ट होने का ख़तरा दिखाई देता है, उतनी ही व्यग्रता जीवन की संभावनाओं की खोज के प्रति दिखाई देती है।
बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता का सार- Bacche Kaam Par Ja Rahe Hai Summary: राजेश जोशी ने हमेशा मानवीय दुखों, खासकर बच्चों और महिलाओं के दुखों को अपनी कविता में स्थान दिया है। प्रस्तुत कविता में भी कवि इस बात से दुखी है कि बहुत सारे बच्चे ऐसे होते हैं, जिन्हें अपना पेट भरने के लिए बचपन से ही काम पर जाना पड़ता है। उन्हें पढ़ने-लिखने और खेलने का मौका नहीं मिलता। इस तरह उनसे उनका बचपन छीन लिया जाता है। इसीलिए प्रस्तुत कविता में कवि यह प्रश्न पूछ रहा है कि आखिर बच्चें काम पर क्यों जा रहे हैं? उनके अनुसार यह बहुत ही भयावह है कि छोटे-छोटे बच्चे सुबह-सुबह स्कूल जाने के बजाय काम पर जा रहे हैं।
उन्हें ऐसा लग रहा है कि सारे खिलौने, सारी किताबें, खेलने की जगह सब ख़त्म हो गई है और इसलिए बच्चे काम पर जा रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि सब कुछ मौजूद है। इसीलिए कवि और भी अधिक परेशान है। अपनी इस कविता में कवि ने बाल-मजूदरी पर अपना क्रोध व्यक्त किया है। उनके अनुसार यह बहुत ही ग़लत बात है और सरकार तथा समाज को इस बात ज़रूर ध्यान देना चाहिए।
बच्चे काम पर जा रहे हैं- Bacche Kaam Par Ja Rahe Hai Poem
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के निचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
ख़त्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह
कि हैं सारी चींजे हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
Bachhe Kaam Par Ja Rahe Hai Summary in Hindi Class 9 – बच्चे काम पर जा रहे हैं
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-17 कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से ली गई हैं। इस कविता के लेखक राजेश जोशी जी है। इसमें लेखक ने बच्चों के सुबह काम पर जाने का वर्णन किया है और बाल- मजदूरी के प्रति चिंता भी जताई है।
बच्चे काम पर जा रहे हैं भावार्थ:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि राजेश जोशी जी ने हमारे समाज में मौजूद बाल-मजदूरी की समस्या को दिखाया है और हमारा ध्यान इस समस्या की ओर आकर्षित करने की कोशिश की है। कवि ने कविता की प्रथम पंक्तियों में ही लिखा है कि बहुत ही ठण्ड का मौसम है और सुबह-सुबह का वक्त है। चारों तरफ कोहरा छाया हुआ है। सड़कें भी कोहरे से ढकी हुई हैं। परन्तु इतनी ठण्ड में भी छोटे-छोटे बच्चे कोहरे से ढकी सड़क पर चलते हुए, अपने-अपने काम पर जाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि उन्हें अपनी रोजी-रोटी का इंतज़ाम करना है। कोई बच्चा कारखाने में मजदूरी करता है, तो कोई चाय के दुकान में काम करने के लिए मजबूर है। जबकि इन बच्चों की उम्र तो अभी खेलने-कूदने की है।
बच्चे काम पर जा रहे हैं का विशेष :-
1. इस कविता में लेखक ने सामान्य बोल- चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है।
2. ‘सुबह-सुबह’ में अनुप्रास अलंकार है।
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?
बच्चे काम पर जा रहे हैं प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-17 कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से ली गई हैं। इस कविता के लेखक राजेश जोशी जी है। इसमें लेखक ने बच्चों के प्रति चिंता व्यक्त की है कि खेलने- कूदने की उम्र में छोटे- छोटे बच्चे अपना पेट पालने के लिए मजदूरी कर रहे हैं।
बच्चे काम पर जा रहे हैं भावार्थ:- इन पंक्तियों में कवि ने समाज में व्याप्त बाल-मजदूरी जैसी समस्या पर चिंतन करते हुए कहा है कि हमारे समय की सबसे भयानक बात यह है कि छोटे-छोटे बच्चों को काम पर जाना पड़ रहा है। इस बात को हम जिस सरलता से कह रहे हैं, यह कवि को और भयानक लग रहा है। जबकि हमें इसकी ओर ध्यान देना चाहिए और यह जानना या पता लगाना चाहिए कि पढ़ने-खेलने की उम्र में बच्चों को अपना पेट पालने के लिए यूँ काम पर क्यों जाना पड़ रहा है। इसे हमें समाज से एक प्रश्न की तरह पूछना चाहिए कि इन छोटे बच्चों को काम पर क्यों जाना पड़ रहा है? जबकि इनकी उम्र अभी खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की है।
बच्चे काम पर जा रहे हैं का विशेष :-
1. अंतिम पंक्ति में कवि ने हमारे समक्ष एक प्रश्न खड़ा किया है कि बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं?
2. इस कविता में लेखक ने सामान्य बोल- चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है।
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के निचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
बच्चे काम पर जा रहे हैं प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-17 कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से ली गई हैं। इस कविता के लेखक राजेश जोशी जी है। इसमें लेखक बच्चों को सुबह कोहरे में काम पर जाते देखकर सोचते है कि क्या बच्चों के लिए गेंदे खत्म हो गई या स्कूल भूकंप में ढह गये हैं?
बच्चे काम पर जा रहे हैं भावार्थ:- कवि बाल मजदूरों को सुबह भीषण ठण्ड एवं कोहरे के बीच अपने-अपने काम पर जाते देखता है, जिससे कवि हताशा एवं निराशा से भर जाता है। इसी कारणवश कवि के मन में कई तरह के सवाल उठने लगते हैं। कवि को यह समझ नहीं आ रहा है कि क्यों ये बच्चे अपना मन मारकर इतनी सुबह-सुबह ठण्ड में काम पर जाने के लिए विवश हैं। कवि सोचता है कि क्या खेलने के लिए सारी गेंदें खत्म हो चुकी है या आकाश में चली गई हैं? क्या बच्चों के पढ़ने के लिए एक भी किताब नहीं बची है? क्या सारी किताबों को दीमकों ने खा लिया है? क्या बाकी सारी खिलौने कहीं किसी काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं? जो अब इन बच्चों के लिए कुछ नहीं बचा? क्या इन बच्चों को पढ़ाने वाले मदरसे एवं विद्यालय भूकंप में टूट चुके हैं, जो ये बच्चे पढ़ाई एवं खेल-कूद को छोड़कर काम पर जा रहे हैं?
बच्चे काम पर जा रहे हैं का विशेष :-
1. ‘क्या काले पहाड़ के निचे दब गए हैं सारे खिलौने’ में अनुप्रास अलंकार है।
2. इस कविता में लेखक ने सामान्य बोल- चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है।
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
ख़त्म हो गए हैं एकाएक
बच्चे काम पर जा रहे हैं प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-17 कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से ली गई हैं। इस कविता के लेखक राजेश जोशी जी है। लेखक बच्चों को सुबह काम पर जाते देखकर सोचते है कि बच्चों के खेलने के लिए मैदान, घर का आँगन सब खत्म हो चुके हैं क्या?
बच्चे काम पर जा रहे हैं भावार्थ:- यहाँ कवि अपने मन में उठ रहे सवालों को बयां करते हुए कहते हैं कि क्या बच्चों के खेलने की सारी जगह ख़त्म हो चुकी है? क्या सारे मैदान जहाँ बच्चे खेलते थे, सारे बागीचे जहाँ बच्चे टहला करते थे एवं सारे घरों के आँगन खत्म हो चुके हैं? जो इन बच्चों के पास अब कुछ नहीं बसा, इसीलिए ये सुबह-सुबह काम पर जा रहे हैं।
बच्चे काम पर जा रहे हैं का विशेष :-
1. इस कविता में लेखक ने सामान्य बोल- चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है।
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह
कि हैं सारी चींजे हस्बमामूल
बच्चे काम पर जा रहे हैं प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-17 कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से ली गई हैं। इस कविता के लेखक राजेश जोशी जी है। इसमें लेखक ने हमारे सामने एक प्रश्न खड़ा किया है कि अगर दुनिया में सब चीज़े मौजूद है तो फिर बच्चे काम करने के लिए विवश क्यों हैं?
बच्चे काम पर जा रहे हैं भावार्थ:- कवि के अनुसार, छोटे-छोटे बच्चे काम पर इसलिए जा रहे हैं क्योंकि दुनिया की सारी खेलने की चीज़ें जैसे गेंद, खिलौने, बागीचे, मैदान, घर का आँगन इत्यादि खत्म हो चुकी हैं। उनके पढ़ने के लिए सारी किताबें, विद्यालय एवं मदरसे ख़त्म हो चुके हैं। कवि आगे कह रहा है कि अगर सच में ऐसा है, तो यह कितनी भयानक बात है और इस दुनिया के होने का कोई अर्थ ही नहीं। परन्तु कवि को इससे भी ज़्यादा भयानक तब लगता है, जब उसे याद आता है कि बच्चों के खेलने-कूदने की सारी चीजें उपलब्ध हैं और उसके बाद भी बच्चे काम पर जाने के लिए विवश हैं। इसी कारण कवि हताश एवं निराश हो जाता है।
कवि अपनी इन पंक्तियों के द्वारा समाज में चल रहे बाल-श्रम की ओर हमारा ध्यान खींचने में पूरी तरह से सफल हुए हैं। कवि के अनुसार, बचपन खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई एवं बच्चों के विकास का समय होता है। इस वक्त उन पर कोई बोझ या ज़िम्मेदारी नहीं होनी चाहिए।
बच्चे काम पर जा रहे हैं का विशेष :-
1. इस कविता में लेखक ने सामान्य बोल- चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है।
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
बच्चे काम पर जा रहे हैं प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ पाठ-17 कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ से ली गई हैं। इस कविता के लेखक राजेश जोशी जी है। इसमें लेखक ने छोटे- छोटे बच्चों के सुबह काम पर जाने की विवशता का वर्णन किया है और बाल- मजदूरी जैसी भयंकर समस्या के प्रति चिंता भी जताई है।
बच्चे काम पर जा रहे हैं भावार्थ:- कवि की सोच यह थी कि दुनिया में स्थित सभी खेलने-कूदने की जगह एवं चीजें ख़त्म हो गई हैं और इसीलिए बच्चे काम पर जा रहे हैं। लेकिन जब वह देखते हैं कि ये सारे चीजें एवं जगहें दुनिया में भरी पड़ी हैं। तब उनमें चिंता घर कर जाती है, क्योंकि उन्हें यह समझ नहीं आता कि इन सारी चीजों के मौजूद होने के बाद भी आखिर क्यों छोटे-छोटे बच्चे दुनिया की हज़ार-हज़ार सड़कों से चलकर अपने-अपने काम पर जाने के लिए विवश हैं। इसीलिए उन्होंने हमारे सामने यह प्रश्न उठाया है कि “काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?”
बच्चे काम पर जा रहे हैं का विशेष :-
1. ‘बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे’ में अनुप्रास अलंकार है।
2. इस कविता में समाज की बाल -मजदूरी जैसी भयंकर समस्या को उभारा गया है।
3. इस कविता में लेखक ने सामान्य बोल- चाल की शब्दावली का सहज प्रयोग किया गया है।
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