Class 9 Hindi Kshitij Chapter 13 Summary
Graam Shree by Sumitra Nandan Pant – सुमित्रानंदन पन्त (ग्राम श्री)
सुमित्रानंदन पन्त का जीवन परिचय Sumitra Nandan Pant ka Jeevan Parchay: सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख कवियों में से एक है। इनका जन्म उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले में कौसानी गांव में सन् 1900 में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई। 1918 में वे अपने मँझले भाई के साथ काशी आ गए और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। वहाँ से माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण कर, वे इलाहाबाद चले गए। सन् 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी द्वारा भारतीयों से अंग्रेजी विद्यालयों, महाविद्यालयों, न्यायालयों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने के आह्वान पर, उन्होंने महाविद्यालय छोड़ दिया और घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे। उनकी मृत्यु 28 दिसम्बर 1977 को हुई।
सात वर्ष की उम्र में, जब वे चौथी कक्षा में ही पढ़ रहे थे, उन्होंने कविता लिखना शुरु कर दिया था। सन् 1926-27 में उनका प्रसिद्ध काव्य-संकलन ‘पल्लव’ प्रकाशित हुआ। सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य-कृतियाँ हैं – ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि।
हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण(1961), ज्ञानपीठ(1968), साहित्य अकादमी, तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया। जहां उनकी प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के रमणीय चित्र मिलते हैं, वहीं दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाएं व कोमल भावनाएं देखने को मिलती हैं।
उनके अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशीलता के भावों की अभिव्यक्ति के लिए सटीक शब्दों के चयन के कारण उन्हें शब्द-शिल्पी कवि भी कहा जाता है।
Gram Shree Class 9 Explanation – ग्राम श्री कविता का सार : ग्राम श्री कविता में कवि ने गांव के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही मनोहर वर्णन किया है। हरे-भरे खेत, बगीचे, गंगा का तट, सभी कवि की इस रचना में जीवित हो उठे हैं। अगर आपने अपने जीवन-काल में कभी भी गांव की सुषमा और समृद्धि का दृश्य नहीं देखा है, तब भी आप इस कविता को पढ़कर ये कल्पना कर सकते हैं कि वह कैसा प्रतीत होता होगा। खेतों में उगी फसल आपको ऐसी लगेगी, मानो दूर-दूर तक हरे रंग की चादर बिछी हुई हो। उस पर ओस की बूँदें गिरने के बाद जब सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो वह चाँदी की तरह चमकती है।
नए उगते हुए गेहूँ, जौ, सरसों, मटर इत्यादि को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो प्रकृति ने श्रृंगार किया है। आम के फूल, जामुन के फूल की सुगंध पूरे गांव को महका रही है। गंगा के किनारे का दृश्य भी इतना ही मनमोहक है। जल-थल में रहने वाले जीव अपने-अपने कार्य में लगे हुए हैं। जैसे कि बगुला नदी के किनारे मछलियाँ पकड़ते हुए खुद को सँवार रहा है। इस तरह कवि अपनी इस कविता के माध्यम से हमें गांव के अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में बता रहे हैं।
ग्राम श्री- सुमित्रानंदन पंत
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!
रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली!
रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते ही फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर!
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढ़ाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नीम्बू, दाड़िम
आलू, गोभी, बैगन, मूली!
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गये सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली!
बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!
हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोये,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोये-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन!
ग्राम श्री कविता का भावार्थ – Gram Shree Class 9 Explanation
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!
ग्राम श्री प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई हैं। इस कविता के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पन्त जी है। इसमें कवि ने प्रकृति सौंदर्य का बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है।
ग्राम श्री भावार्थ :- ग्राम श्री कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने हरी-भरी धरती के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है। गांव में चारों तरफ हरियाली फैली हुई है और जब सुबह-सुबह इस पर ओस की बूँदें गिरती हैं और सूर्योदय के बाद जब सूर्य की किरणें इन बूंदों पर पड़ती हैं, तो सारा वातावरण झिलमिल-झिलमिल चमक उठता है। ऐसा प्रतीत होता है कि खेत की हरियाली के ऊपर चाँदी की एक चादर बिछी हुई है।
नए उगे हुए हरे पत्तों पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो ऐसा लगता है, मानो सूर्य की किरणें उनके आर-पार चली जा रही हैं और उनके अंदर स्थित हरे रंग का खून स्पष्ट दिखाई दे रहा है। जब हम दूर से इस वातावरण को निहारने लगते हैं, तो हमें ऐसा प्रतीत होता है कि नीले रंग का आकाश झुककर खेतों की हरियाली के ऊपर अपना आँचल बिछा रहा है।
ग्राम श्री विशेष-
1. ‘हिल हरित‘ में अनुप्रास अलंकार है।
2. ‘हरे हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।
4 ‘तिनकों के हरे हरे तन पर‘ में मानवीकरण अलंकार है।
रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली!
ग्राम श्री प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई है। इस कविता के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पन्त जी है। इसमें कवि ने खेतों में फैली हरी-भरी फसलों का सुंदर वर्णन किया है।
ग्राम श्री भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने फ़सलों से लदी हुई धरती की सुंदरता का वर्णन बड़े ही रोमांचक ढंग से किया है। खेतों में जौ और गेहूँ की फ़सल उगने से धरती बहुत ही रोमांचित लग रही है। अरहर(दाल) और सनई की फसलें सोने की करघनी जैसी लग रही हैं, जो धरती रूपी युवती की कमर में बंधी हुई है और हवा चलने से हिल-हिलकर मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रही है। सरसों के फूलों के खिल जाने से पूरे वातावरण में एक ख़ुशबू बह रही है, जो धरती की प्रसन्नता को दर्शा रही है। इस हरी-भरी धरती की सुंदरता को बढ़ाने के लिए, अब तीसी के नीले फूल भी अपना सर उठाकर झांक रहे हैं। इस प्रकार खेतों में गेहूं, जौ की बालियाँ, अरहर और सनई की फलियाँ, सरसों के पीले फूल एवं अलसी की कलियाँ धरती का सौंदर्य बढ़ा रही हैं।
ग्राम श्री विशेष-
1. ‘पीली पीली‘ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
2. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।
रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हंस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती है रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते ही फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर!
ग्राम श्री प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई है। इस कविता के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पन्त जी है।
ग्राम श्री भावार्थ :- ग्राम श्री कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने खेत में रंग-बिरंगे फूलों और तितलियों की सुंदरता का वर्णन किया है। विभिन्न रंगों के फूलों के बीच खड़ी मटर की फसल हँस रही है, जैसे कोई सखी जब सज-धजकर तैयार होती है, तो सारी सखियाँ उसे देखकर मुस्कुराने लगती हैं। इन्हीं के बीच फ़सलों की बीज से लदी लड़ियाँ खड़ी हुई हैं। इन सब के बीच, कई तरह की रंग-बिरंगी तितलियां एक फूल से दूसरे फूल तक उड़-उड़कर जा रही हैं। यह दृश्य ऐसा लग रहा है, मानो ख़ुद फूल ही उड़ -उड़कर दूसरे फूलों तक जा रहे हैं। इस तरह प्रस्तुत पंक्तियों में कवि की कल्पना सजग हो उठी है, जिसमें उन्होंने रंगों से भरे प्राकृतिक वातावरण का बड़ा ही मनभावन चित्रण किया है।
ग्राम श्री विशेष-
1. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. ‘रंग रंग’ और ‘उड़ उड़’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
3.’फूले फिरते‘ और ‘छीमियाँ छिपाए‘ में अनुप्रास अलंकार है।
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढ़ाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नीम्बू, दाड़िम
आलू, गोभी, बैगन, मूली!
ग्राम श्री प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई है। इस कविता के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पन्त जी है। इसमें वसंत -ऋतु का वर्णन किया गया है।
ग्राम श्री भावार्थ :- कवि ने ग्राम श्री कविता की इन पंक्तियों में वसंत-ऋतु का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है। कवि कहता है कि आम के पेड़ों की डालियाँ सुनहरी और चाँदनी रंग की आम की बौर (कलियों) से लद चुकी हैं। पतझड़ के कारण ढाक और पीपल के पेड़ की पत्तियाँ झड़ रही हैं। इन सबसे कोयल मतवाली होकर मधुर संगीत सुना रही है। पूरे वातावरण में कटहल की महक को महसूस किया जा सकता है और आधे पक्के-आधे कच्चे जामुन तो देखते ही बनते हैं। झरबेरी बेरों से लद चुकी है। खेतों में कई तरह के फल एवं सब्ज़ियाँ उग चुकी हैं, जैसे आड़ू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली इत्यादि।
ग्राम श्री विशेष-
1. ‘झरबेरी झूली‘ में अनुप्रास अलंकार है।
2. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गये सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली!
ग्राम श्री प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक क्षितिज पाठ-13 कविता ग्राम श्री से ली गई है। इस कविता के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पन्त जी है। इसमें कवि ने फलों और सब्जियों के पककर तैयार होने का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है।
ग्राम श्री भावार्थ :- वसंत ऋतु होने के कारण अमरुद के पेड़ों पर फल पक चुके हैं और उनपर लाल-लाल निशान भी दिखाई दे रहे हैं। ये इस बात का संकेत है कि अमरुद मीठे हो चुके हैं। बेर भी पककर सुनहरे रंग के हो गए हैं। आवंले के फल से पूरी डाल ऐसी लदी हुई है, जैसे किसी गहने में मोती जड़े हों। पालक की फसल पूरे खेत में लहलहा रही है और धनिये की सुगंध तो पूरे वातावरण में फैली हुई है। लौकी और सेम की लताएं पूरे खेतों में फ़ैल गई हैं। टमाटर पककर लाल हो चुके हैं, मानो जैसे ज़मीन पर मखमल बिछा हुआ हो। पेड़ों पर लगी हरी मिर्चों के गुच्छे किसी बड़ी हरी थैली की तरह लग रहे हैं।
ग्राम श्री विशेष-
1. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. ‘लाल लाल‘ में पुनरुक्ति अलंकार है।
3.’फलीं फैलीं‘ में अनुप्रास अलंकार है।
बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!
ग्राम श्री प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई है। इस कविता के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पन्त जी है। इसमें कवि ने गंगा तट के आस-पास की घास और आस-पास बैठे पक्षियों का सुंदर वर्णन किया है।
ग्राम श्री भावार्थ :- ग्राम श्री कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में गंगा-तट के सौंदर्य का वर्णन किया गया है। कवि सुमित्रानंदन पंत जी के अनुसार, गंगा के किनारे रेत टेढ़ी-मेढ़ी कुछ इस तरह फैली हुई है, जैसे कोई सांप बालू पर अपने निशान छोड़ गया हो। उस रेत पर पड़ती सूर्य की किरणें रंग-बिरंगी नजर आ रही है। गंगा के तट पर बिछी घास और तरबूजों की खेती बहुत ही सुन्दर दिखाई पड़ रही है। गंगा के तट पर शिकार करते बगुले अपने पंजों से कलँगी को ऐसे सँवार रहे हैं, मानो वे कंघी कर रहे हों। सुरखाब या चक्रवाक (चकवा) पक्षी जल में तैर रहे हैं और मगरैठी पक्षी आराम से सोए हुए हैं।
ग्राम श्री विशेष-
1. खड़ी बोली भाषा का प्रयोग हुआ है।
हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोये,
भीगी अँधियाली में निशि
तारक स्वप्नों में-से खोये-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन!
ग्राम श्री प्रसंग :- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘क्षितिज‘ पाठ-13 कविता ‘ग्राम श्री‘ से ली गई है। इस कविता के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पन्त जी है। इसमें कवि ने शरद ऋतु के अंतिम समय में गाँव के शांत और सुंदर वातावरण का वर्णन किया है।
ग्राम श्री भावार्थ :- ग्राम श्री कविता की अंतिम पंक्तियों में कवि ने गांव की हरियाली, शांति एवं प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही सरल वर्णन किया है। उनके अनुसार, सर्दी की धूप में जब सूर्य की किरणें खेतों की हरियाली पर पड़ती हैं, तो वो इस तरह चमक उठती हैं, मानो वो खुशी से झूम रही हों। कवि को ये दोनों आलस्य से भरे सोये हुए प्रतीत होते हैं। सर्दी की रातें ओस के कारण भीगी हुई जान पड़ रही हैं, जिनमें तारे मानो किसी सपने में खोये हुए लग रहे हैं। इस वातावरण में पूरा गांव किसी रत्न की तरह लग रहा है, जिसे आकाश ने नीले रंग की चादर ओढ़ा रखी हो। इस प्रकार शरद ऋतु के अंतिम कुछ दिनों में गांव के वातावरण में अनुपम शांति की अनुभूति हो रही है, जिससे गांव के सभी लोग बहुत प्रभावित हैं।
ग्राम श्री विशेष-
1. ‘हँसमुख हरियाली हिम’ में अनुप्रास अलंकार है।
2. ‘नीलम नभ‘ में अनुप्रास अलंकार है।
3. शरद ऋतु के अंतिम दिनों का वर्णन है।
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