मेरे संग की औरतें पाठ का सारांश – Class 9 Hindi Kritika Chapter 2

इस पाठ में हम कक्षा 9 कृतिका पाठ 2 के मेरे संग की औरतें का सारांश (class 9 hindi kritika chapter 2 mere sang ki auraten summary) पढ़ेंगे और समझेंगे।

कक्षा 9 कृतिका पाठ 2 के मेरे संग की औरतें का सारांश

 

मेरे संग की औरतें लेखिका मृदुला गर्ग का जीवन परिचय 


मृदुला गर्ग का जन्म 25 अक्टूबर 1938, कोलकाता में हुआ। सन् 1960 में अर्थशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री लेने के बाद उन्होंने 3 साल तक दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य भी किया। उनके उपन्यास और कहानियों का अनेक हिंदी भाषाओं तथा जर्मन, चेक, जापानी और अंग्रेजी में अनुवाद हुआ है। उन्होंने उपन्यास, कहानी-संग्रह, नाटक तथा निबंध संग्रह सब मिलाकर 20 से अधिक पुस्तकों की रचना की है 

मृदुला गर्ग महिलाओं तथा बच्चों के हित में समाज सेवा के काम करती रही हैं। उनका उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ नारी-पुरुष के संबंधों में शरीर को मन के समांतर खड़ा करने और इस पर एक नारीवाद या पुरुष-प्रधानता विरोधी दृष्टिकोण रखने के लिए काफी चर्चित और विवादास्पद रहा था। उन्होंने इंडिया टुडे के हिन्दी संस्करण में 2003 से 2010 तक ‘कटाक्ष’ नामक स्तंभ लिखा है, जो अपने तीखे व्यंग्य के कारण खूब चर्चा में रहा।

मृदुला गर्ग द्वारा लिखी गई महत्वपूर्ण रचनाएँ –

आठ उपन्यास – उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्य, मैं और मैं, कठगुलाब, मिलजुल मन और वसु का कुटुम। 

ग्यारह कहानी संग्रह – कितनी कैदें, टुकड़ा टुकड़ा आदमी, डैफ़ोडिल जल रहे हैं, ग्लेशियर से, उर्फ सैम, शहर के नाम, चर्चित कहानियाँ, समागम, मेरे देश की मिट्टी अहा, संगति विसंगति, जूते का जोड़ गोभी का तोड़।

चार नाटक – एक और अजनबी, जादू का कालीन, तीन कैदें और सामदाम दंड भेद।

तीन निबंध संग्रह – रंग ढंग, चुकते नहीं सवाल तथा कृति और कृतिकार।

एक यात्रा संस्मरण – कुछ अटके कुछ भटके।

दो व्यंग्य संग्रह – कर लेंगे सब हज़म, खेद नहीं है।

मेरे संग की औरतें की भूमिका

‘मेरे संग की औरतें’ रचना लेखिका मृदुला गर्ग द्वारा रचित एक ‘संस्मरणात्मक’ गद्य है। यह पाठ मुख्य रूप से औरतों पर केन्द्रित है कि किस तरह से लेखिका और उसके परिवार की औरतें परंपरागत तरीके से जीते हुए भी लीक से हटकर अपना जीवन जीती हैं। इस पाठ में एक ऐसे परिवार के बारे में बताया गया है जहाँ लड़का – लड़की में कोई भेदभाव नहीं किया जाता। लेखिका के जीवन पर उसकी माँ, दादी तथा उसकी बहनों का विशेष प्रभाव पड़ा।

मेरे संग की औरतें के पात्रों का परिचय 

  1. लेखिका की नानी जी – अनपढ़ होते हुए भी स्वतंत्र ख्याल रखने वाली औरत थी।
  2. लेखिका के नाना जी – विलायती ढंग से जीवन जीने वाले और पेशे से बैरिस्टर थे।

      3 . लेखिका की माँ – पन्द्रह वर्ष की उम्र में विवाह और  गांधी जी के सिद्धांतों पर चलने वाली स्त्री।

  1. लेखिका की परदादी- लड़का- लड़की में भेदभाव न करने वाली।
  2. लेखिका के पिताजी- स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने वाले।
  3. लेखिका की दादी जी- शांत स्वाभाव वाली औरत। 
  4. लेखिका- समाज के प्रति सच्ची भावना रखने वाली।
  5. लेखिका की चार बहनें और एक भाई : मंजुल भगत – लेखिका की बड़ी बहन और एक प्रसिद्ध लेखिका
  6. चित्रा – लेखिका से छोटी बहन और लेखन कार्य नहीं करती।
  7. रेणु- लेखिका की छोटी बहन और जिद्दी लड़की।
  8. अचला – सबसे छोटी बहन और अंग्रेजी में लिखती है।
  9. राजीव- पाँच बहनों के बाद सबसे छोटा लेखिका का भाई और हिंदी में लिखता है।

मेरे संग की औरतें पाठ का सार (class 9 hindi kritika chapter 2 mere sang ki auraten summary)

मेरे संग की औरतें पाठ की लेखिका की नानी

mere sang ki auraten summary: लेखिका अपनी नानी के बारे में बताती है कि मैंने अपनी नानी को कभी देखा नहीं था। मेरी माँ की शादी से पहले ही नानी का देहांत हो गया था। लेखिका ने अपनी नानी से कहानी न सुनी हो पर उनकी कहानी जरूर सुनी थी। लेखिका की नानी पारंपरिक, अनपढ़, पर्दानशीं औरत थीं। जिनके पति शादी के तुरंत बाद ही उन्हें छोड़कर बैरिस्ट्री की पढ़ाई के लिए विलायत चले गए थे। जब वे विलायत से वापिस लौटे तो विलायती ढंग से ही अपनी जिंदगी जीने लगे। नानी ने अपने रहन-सहन पर उसका कोई असर नहीं पड़ने दिया और कभी अपनी इच्छा या पसंद- नापसंद का इज़हार अपने पति से नहीं किया।

लेखिका की नानी जी के आज़ाद ख्याल 

mere sang ki auraten summary: जब लेखिका की नानी ने अपनी मौत को करीब देखा, तो उन्हें पंद्रह वर्ष की बेटी यानि लेखिका की माँ की शादी की चिंता सताने लगी। नानी ने नाना से कहा कि वे पर्दे का लिहाज छोड़कर उनके दोस्त स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से मिलना चाहती हैं। उस समय नाना ने सवाल जवाब करने के बजाए हालात देखते हुए तुरंत अपने दोस्त को लेकर आ गए। 

अब जो नानी ने कहा, वह सभी को हैरान करने वाला था। उन्होंने कहा, “वचन दीजिए कि मेरी लड़की के लिए वर आप तय करेंगे। मेरे पति तो साहब हैं और मैं नहीं चाहती मेरी बेटी की शादी, साहबों के फ़रमाबरदार से हो। आप अपनी तरह आज़ादी का सिपाही ढूँढ़कर उसकी शादी करवा दीजिएगा।” लेखिका की नानी निजी जीवन में भी काफ़ी आज़ाद ख्याल रखने वाली औरत थी। लेकिन उन्होंने नाना की जिंदगी में कोई दखल नहीं दिया, न उसमें साझेदारी की, पर अपनी जिंदगी को अपने ढंग से जीती जरूर रहीं। 

मेरे संग की औरतें पाठ की लेखिका की माँ 

mere sang ki auraten summary: लेखिका की माँ की शादी एक पढ़े-लिखे लड़के से हुई थी, जिसे आज़ादी के आन्दोलन में हिस्सा लेने के अपराध में आई.सी.एस. के इम्तिहान में बैठने से रोक दिया गया था और जिसके पास पैसा-धेला एक नहीं था। लेखिका की माँ गाँधी जी के सिद्धांतों पर चलने और ऊँचे ख्याल रखने पर मजबूर हुईं। जिसके चलते लेखिका की माँ खादी की साड़ी पहनती थी। जिसका वे रात भर जागकर पहनने का अभ्यास करती थीं। जिससे दिन में उन्हें शर्मिंदगी न उठानी पड़े। वे इतनी ज्यादा नाजुक थीं कि एक दिन मेरी दादी ने कहा, “हमारी बहू तो ऐसी है कि धोई, पोंछी और छींके पर टांग दी।” लेकिन ऐसी कभी नौबात नहीं आई।

लेखिका की माँ का स्वभाव 

mere sang ki auraten summary: लेखिका की माँ के ससुराल वालों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। परंतु वे इस बात से खुश थे कि उनके समधी पक्के साहब हैं। लेखिका की माँ की सुन्दरता, स्वभाव का परिवार पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। उनसे घर में काम नहीं करवाया जाता था। 

लेखिका ने अपनी माँ को एक भारतीय माँ की तरह नहीं देखा था। लेखिका को उनकी माँ ने कभी लाड़-प्यार नहीं किया, न कभी खाना बनाकर खिलाया और उनको न कभी अच्छी पत्नी-बहू होने की सीख दी। लेखिका की माँ बीमार रहती थीं इसलिए वे घर का काम नहीं कर पाती थी। लेकिन उन्हें किताबें पढ़ने, साहित्य चर्चा और संगीत सुनना पंसद था। परिवार वाले उन्हें कुछ नहीं कहते थे क्योंकि वे साहबी परिवार से थी। वे कभी झूठ नहीं बोलती थी, किसी की गोपनीय बात दूसरों पर ज़ाहिर नहीं करती थी। उनके इसी स्वभाव के कारण उन्हें घर में आदर मिलता और बाहरवालों से दोस्ती मिलती थी। 

वे लेखिका तथा अन्य बच्चों की भी बहुत मित्र थी। माँ के सारे काम लेखिका के पिता जी करते थे। उनके पत्रों को भी घर में कोई नहीं खोलता था। सभी को घर में अपना निजत्व बनाए रखने की छूट थी। जिस कारण से लेखिका की तीन बहनें और छोटा भाई लेखन कार्य में लग गए।

मेरे संग की औरतें पाठ की लेखिका की परदादी 

mere sang ki auraten summary: परंपरा से हट कर चलने वाली लेखिका की परदादी भी थी। उनका व्रत था कि कभी उनके पास कभी दो से तीन धोतियाँ हो गई तो वे तीसरी धोती दान कर देंगी। उन्होंने लेखिका की माँ के पहली बार गर्भवती होने पर मंदिर में जाकर लड़की पैदा होने की मन्नत माँगी। जबकि सब पहली संतान लड़का चाहते हैं। उन्होंने घर में सबके सामने अपनी इस इच्छा को भी व्यक्त कर दिया था। इसका परिणाम हुआ कि लेखिका की माँ ने पाँच लड़कियों को जन्म दिया। लोगों का मानना था कि मेरी परदादी के भगवान से सीधे तार जुड़े हुए हैं। 

लेखिका की दादी का चोर के प्रति व्यवहार

mere sang ki auraten summary: एक चोर सेंध लगाकर दादी के कमरे में घुस गया, तो उन्होंने पूछा कि कौन है? चोर ने कहा जी मैं। दादी ने उसे लोटा पकड़ा दिया और पानी लाने को कहा। चोर ने घबराकर कहा कि मैं तो चोर हूँ। दादी ने उसे अच्छी तरह से हाथ धोकर पानी लाने के लिए भेज दिया। उसे पहरेदार ने कुएं से पानी भरते हुए देख लिया और सबके सामने ले गया, तो दादी ने लोटे का आधा पानी पीकर, बचा हुआ पानी चोर को पिला दिया और उसे अपना बेटा कहकर चोरी छोड़कर खेती करने की सलाह दी।

मेरे संग की औरतें पाठ की लेखिका का बचपन 

mere sang ki auraten summary: 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिलने पर लेखिका इंडिया गेट पर जाकर आज़ादी का समारोह देखना चाहती थी। परंतु टाइफाइड होने के कारण न जा सकी। उस समय वे केवल नौ वर्ष की थी और रोने लगी, तो उनके पिताजी ने उन्हें ‘ब्रदर्स कारामजोव’ उपन्यास पढ़ने के लिए दिया। लेखिका को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था वे रोना छोड़कर पढ़ने लगी। इस उपन्यास में बच्चों पर होने वाले अत्याचार, अनाचार का एक अध्याय उसे याद हो गया। 

मेरे संग की औरतें पाठ की लेखिका की बहनों का परिचय 

mere sang ki auraten summary: लेखिका और उनकी चारों बहनें लड़कियाँ होते हुए भी कभी हीन भावना से ग्रस्त नहीं हुई और हमेशा लीक पर चलने से इंकार करती रहीं। ये उनके जीवन में आई औरतों का ही प्रभाव था जिसके कारण वे ये सब कर सकीं। 

पहली लड़की लेखिका की बड़ी बहन मंजुल भगत थी, जिसका घर का नाम रानी था। इन्होंने ये नाम विवाह के बाद लेखिका बनने पर रखा था। लेखिका का घर का नाम उमा था परंतु साहित्य जगत में मृदुला गर्ग नाम से प्रसिद्ध हुई। लेखिका से छोटी बहन का घर का नाम गौरी और बाहर का चित्रा है पर वे लिखती नहीं थी। चौथी बहन रेणु और पाँचवी अचला है। फिर भाई पैदा हुआ जिसका नाम राजीव रखा गया। अचला और राजीव भी लिखते हैं। अचला अंग्रेज़ी में और राजीव हिंदी में लिखता है। सभी लोग घर में इन चारों का लिखा पढ़ते हैं। परंतु लेखिका का लिखा उसके ससुराल में कोई भी नहीं पढ़ता। इसलिए वे खुश हैं कि घर में तो उनकी कोई आलोचना नहीं करेगा। 

मेरे संग की औरतें पाठ की लेखिका की बहन रेणु 

mere sang ki auraten summary: लेखिका अपनी उन बहनों की चर्चा करती है, जो लिखती नहीं थी। लेखिका की चौथी बहन रेणु कार में बैठना सामंत शाही का प्रतीक मानकर दोपहर गर्मी में भी बस अड्डे से घर पैदल आती थी। जबकि अचला गाड़ी में बैठकर आती थी। रेणु ने बचपन में एक बार चुनौती दिये जाने पर ‘जनरल थिमैया’ को पत्र लिखकर उनका चित्र मँगवा लिया था। जो एक मोटरसाइकिल पर सवार फ़ौजी उसे घर आकर चित्र दे गया था। तब से आसपास के बच्चे उसे मानने लगे थे।

उसे परीक्षा देना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। स्कूल की कक्षाएं तो उसने पास कर ली थी परंतु बी.ए की परीक्षा न देने के लिए अड़ गई थी। उसका मानना था कि बी.ए करने से क्या लाभ? उसे नौकरी व समाज में सम्मान पाने के तर्क भी बी.ए. करने के लिए प्रभावित न कर सके। लेकिन पिताजी की ख़ुशी के लिए उसने बी.ए. पास की। रेणु सच बोलने में तो माँ से भी आगे थी, उसे तोहफे लेना भी पंसद नहीं था। अगर उसे कोई इत्र भेंट करता तो वे कहती मुझे नहीं चाहिए क्योंकि मैं तो रोज नहाती हूँ। 

मेरे संग की औरतें पाठ की लेखिका की बहन चित्रा 

mere sang ki auraten summary: लेखिका की तीसरे नंबर की बहन चित्रा थी। वे कॉलेज में पढ़ती थी, वे खुद पढ़ने की बजाय दूसरों को पढ़ाने में अधिक रुचि रखती थी। इसी वजह से उसे परीक्षा में कम अंक मिलते थे। चित्रा ने खुद ही लड़के को पसंद करके विवाह का फैसला लिया था। जो कि उस लड़के और उसके माता-पिता तथा लेखिका के माता-पिता को भी नहीं पता था। उसने उस लड़के को पहली मुलाकात में ही अपना निर्णय बता दिया था।

मेरे संग की औरतें पाठ की लेखिका की बहन अचला

mere sang ki auraten summary: लेखिका की छोटी बहन अचला ने पिताजी के कहने के अनुसार अर्थशास्त्र और पत्रकारिता की पढ़ाई करके उनकी इच्छा से ही विवाह किया। वे भी परंपरा के अनुसार न चलकर तीस वर्ष की होते ही लिखने लग गई थी। उन सब बहनों में एक बात एक जैसी थी कि उन सब ने परम्परागत ढंग से घर को भले ही नहीं चलाया था लेकिन परिवार को तोड़ा नहीं था और अपनी शादी को भी अंत तक कायम रखा था।

लेखिका का सामाजिक क्षेत्र में योगदान

mere sang ki auraten summary: शादी के बाद लेखिका को बिहार के एक छोटे से क़स्बे (डालमिया नगर) में रहना पड़ा जहाँ फिल्म देखते समय स्त्री-पुरुष को पति-पत्नी होते हुए भी अलग-अलग बैठना पड़ता था। लेखिका वहाँ दिल्ली की कॉलेज की नौकरी छोड़कर गई थी। उसे नाटकों में अभिनय करने का भी शौक था। वहाँ लेखिका ने साल भर में ही शादीशुदा औरतों को पराए मर्दों के साथ नाटक में अभिनय करने के लिए मना लिया था। लेखिका ने अकाल राहत कोष के लिए नाटक के माध्यम से पैसा इकट्ठा किया था। कर्नाटक के बागलकोट में रहते हुए उन्होंने बच्चों के लिए स्कूल भी खुलवाया और उस स्कूल को सरकार से मान्यता भी दिलवाई। 

लेखिका बहुत जिद्दी थी, अपने लेखन कार्य को भी अपनी जिद्द की वजह से आगे बढ़ाया था। लेकिन वे खुद को अपनी छोटी बहन रेणु के बराबर नहीं पहुँचा पाई थीं। उदाहरण सन् 1950 के आखरी दिनों में दिल्ली में खूब वर्षा हो रही थी, सब यातायात ठप था। रेणु को स्कूल बस लेने नहीं आई थी। सभी ने उसे समझाया कि स्कूल बंद होगा मत जाओ। किसी का कहना न मानकर रेणु पैदल ही स्कूल चली गई। वे भरे पानी में दो मील स्कूल पैदल चली गई जब स्कूल बंद देखा तो घर वापिस आ गई। लेखिका का मानना था कि रेणु की तरह “अपनी ही धुन में मंजिल की ओर चलते रहने का मज़ा ही कुछ ओर होता है।” 

मेरे संग की औरतें पाठ का उद्देश्य 

लेखिका ने अपने इस संस्मरण के माध्यम से हमें उन औरतों के बारे में बताया है जो परंपरा को साथ लेकर चलते हुए भी अपनी जिंदगी स्वतंत्र रूप से व्यतीत करती हैं। लेखिका के परिवार में कोई भी किसी के काम में दखल नहीं देता था।  

मेरे संग की औरतें पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ

मुंहजोर- बहुत बोलने वाली 

परदानशीं- पर्दा करने वाली औरत 

पारंपरिक- जो परंपरा से चला हुआ हो 

आकांशा- चाह, इच्छा 

नजाकत- स्वभावगत कोमलता 

फरमाबरदार- आज्ञाकारी 

उबाऊ- जिससे मन उब जाए

हैरतअंगेज़- आश्चर्यजनक 

मुस्तैद- तैयार. चुस्त, तत्पर 

फ़जल- अनुग्रह, दया 

अपरिग्रह- किसी से कुछ ग्रहण न करना 

बदस्तूर- नियम से 

मर्तबा- बार, दफा 

असंगत- बेमेल, असम्बन्ध 

अकबकाया- घबराया 

दुर्योग- बुरा समय, बुरा अवसर, बुरा योग 

मिराक- मानसिक रोग 

मोहलत- फुर्सत, अवकाश 

पलायन- एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की क्रिया, भागना 

कंठस्थ- जबानी याद किया हुआ

खरामा-खरामा – धीरे- धीरे 

फ़ारिंग- कार्य से निवृत्त, निश्चिंत  

कुतर्क- गलत तर्क, अनुचित तर्क 

शागीर्दों – किसी के द्वारा पढ़ाया- सिखाया गया व्यक्ति, शिष्य, विद्यार्थी 

इसरार- आग्रह 

माकूल- मुनासिब 

निचाट- सुनसान, खुले में 

पोशीदा- रखना, छिपाना 

आरजू- इच्छा 

जुस्तजू- तलाश, खोज 

जाहिर- स्पष्ट 

बाशिंदों- निवासी 

कक्षा 9  की पुस्तक कृतिका  के दूसरे अध्याय मेरे संग की औरतें पाठ का सारांश ‘Class 9 Hindi Kritika Chapter 2  mere sang ki auraten Summary’ से जुड़े प्रश्नों के लिए हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।

Tags-

मेरे संग की औरतें पाठ का सारांश
मेरे संग की औरतें
मेरे संग की औरतें पाठ का सार

mere sang ki auraten summary
class 9 hindi chapter 2 kritika

 

Leave a Comment